सर पे इक साएबाँ तो रहने दे
जल गया घर धुआँ तो रहने दे
सोचता हूँ कि मैं भी ज़िंदा हूँ
मुझ को इतना गुमाँ तो रहने दे
रुख़ हवा का बदल ही जाएगा
बादबाँ पुर-फ़िशाँ तो रहने दे
गर्द इतनी उड़ा न राहों में
पाँव के कुछ निशाँ तो रहने दे
आँख से छिन गए सभी मंज़र
लब पे इक दास्ताँ तो रहने दे
मंज़िलों का पता मिले न मिले
शामिल-ए-कारवाँ तो रहने दे
ग़ज़ल
सर पे इक साएबाँ तो रहने दे
बशीर मुंज़िर