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सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है | शाही शायरी
sar pe harf aata hai dastar pe harf aata hai

ग़ज़ल

सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है

फ़रताश सय्यद

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सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है
तंग हों लोग तो सरदार पे हर्फ़ आता है

वैसे तो मैं भी भुला सकता हूँ तुझ को लेकिन
इश्क़ हूँ सो मिरे किरदार पे हर्फ़ आता है

घर की जब बात निकल जाती है घर से बाहर
दर पे हर्फ़ आता है दीवार पे हर्फ़ आता है

कितना बे-बस हूँ कि ख़ामोश मुझे रहना है
बोलता हूँ तो मिरे यार पे हर्फ़ आता है

चुप जो रहता हूँ तो हूँ बरसर-ए-महफ़िल मुजरिम
अर्ज़ करता हूँ तो सरकार पे हर्फ़ आता है

शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा लब पे अगर आ जाए
दिल पे हर्फ़ आता है दिलदार पे हर्फ़ आता है