सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है 
तंग हों लोग तो सरदार पे हर्फ़ आता है 
वैसे तो मैं भी भुला सकता हूँ तुझ को लेकिन 
इश्क़ हूँ सो मिरे किरदार पे हर्फ़ आता है 
घर की जब बात निकल जाती है घर से बाहर 
दर पे हर्फ़ आता है दीवार पे हर्फ़ आता है 
कितना बे-बस हूँ कि ख़ामोश मुझे रहना है 
बोलता हूँ तो मिरे यार पे हर्फ़ आता है 
चुप जो रहता हूँ तो हूँ बरसर-ए-महफ़िल मुजरिम 
अर्ज़ करता हूँ तो सरकार पे हर्फ़ आता है 
शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा लब पे अगर आ जाए 
दिल पे हर्फ़ आता है दिलदार पे हर्फ़ आता है
        ग़ज़ल
सर पे हर्फ़ आता है दस्तार पे हर्फ़ आता है
फ़रताश सय्यद

