सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था
मिरी ख़्वाहिशों का अज़ाब था कोई ख़्वाब था
तिरी ख़ुशबुओं की तलाश में मिरा राज़-दाँ
वही एक कुंज-ए-गुलाब था कोई ख़्वाब था
वो जो चाँद था सर-ए-आसमाँ कोई याद थी
जो गुलों पे अहद-ए-शबाब था कोई ख़्वाब था
जो न कट सका वो निशान था किसी ज़ख़्म का
जो न मिल सका वो सराब था कोई ख़्वाब था
ग़ज़ल
सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था
बुशरा हाश्मी