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सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था | शाही शायरी
sar-e-dasht dil jo sarab tha koi KHwab tha

ग़ज़ल

सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था

बुशरा हाश्मी

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सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था
मिरी ख़्वाहिशों का अज़ाब था कोई ख़्वाब था

तिरी ख़ुशबुओं की तलाश में मिरा राज़-दाँ
वही एक कुंज-ए-गुलाब था कोई ख़्वाब था

वो जो चाँद था सर-ए-आसमाँ कोई याद थी
जो गुलों पे अहद-ए-शबाब था कोई ख़्वाब था

जो न कट सका वो निशान था किसी ज़ख़्म का
जो न मिल सका वो सराब था कोई ख़्वाब था