सर-ए-बज़्म मेरी नज़र से जब वो निगाह-ए-होश-रुबा मिली
कभी ज़िंदगी का मज़ा मिला कभी ज़िंदगी की सज़ा मिली
कई मंज़िलों से गुज़र गए तो हमें ये राह-ए-वफ़ा मिली
कहीं दिल मिला कहीं दर्द-ए-दिल कहीं दर्द-ए-दिल की दवा मिली
तुम्हें याद है मिरे साथियो कि बिछड़ गए थे वहीं से हम
तुम्हें दर्द-ए-दिल की दवा मिली मुझे दर्द-ए-दिल की दुआ मिली
न बहा सके कभी अश्क भी तिरी बरहमी के ख़याल से
गए ले के जलते चराग़ हम तो हमेशा तेज़ हवा मिली
नहीं ग़म जो मुझ को ज़माने में कोई ग़म की दाद न दे सका
मगर उन के दिल पे लिखी हुई मिरी दास्तान-ए-वफ़ा मिली
दिल-ए-काएनात तड़प उठा वो शुऊ'र-ए-नग़्मा अता किया
जो सदा-ए-साज़-ए-हयात से मिरे साज़-ए-दिल की सदा मिली
जो ज़माना भूल गया तो क्या कि चलन यही है ज़माने का
मगर उन के दिल पे लिखी हुई मिरी दास्तान-ए-वफ़ा मिली
ग़ज़ल
सर-ए-बज़्म मेरी नज़र से जब वो निगाह-ए-होश-रुबा मिली
शादाँ इंदौरी