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सर अपने को तुझ पर फ़िदा कर चुके हम | शाही शायरी
sar apne ko tujh par fida kar chuke hum

ग़ज़ल

सर अपने को तुझ पर फ़िदा कर चुके हम

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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सर अपने को तुझ पर फ़िदा कर चुके हम
हक़-ए-आश्नाई अदा कर चुके हम

तू समझे न समझे हमें साथ तेरे
जो करनी थी ऐ बेवफ़ा कर चुके हम

ख़ुदा से नहीं काम अब हम को यारो
कि इक बुत को अपना ख़ुदा कर चुके हम

मैं पूछा मिरा काम किस दिन करोगे
तो यूँ मुँह फिरा कर कहा कर चुके हम

घुरस ले तू अब उन को चीरे में अपने
तमाशा-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता कर चुके हम

तू जावे न जावे जो करनी थी हम को
समाजत तिरी ऐ सबा कर चुके हम

न बोलेंगे प्यारे तिरी ही सुनेंगे
तू दुश्नाम दे अब दुआ कर चुके हम

कभू काम अपना किसी से न निकला
बहुत ख़ल्क़ की इल्तिजा कर चुके हम

लड़ी 'मुसहफ़ी' आँख जिस से कि अपनी
पर आख़िर उसे आश्ना कर चुके हम