संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें 
हम वो मुसाफ़िर साथ अपने सामान किसी का रक्खें 
रंग-बिरंगे मंज़र दिल में आँखें ख़ाली ख़ाली 
हम आवाज़ किसी को दें इम्कान किसी का रक्खें 
इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें 
एक कहानी सब की क्या उनवान किसी का रक्खें 
दिन भर तो हम पढ़ते फिरें अपनी ग़ज़लें नज़्में 
रात सिरहाने अपने हम दीवान किसी का रक्खें 
उखड़ी उखड़ी उल्टी सीधी 'शाज़' हैं उस की बातें 
आओ कुछ दिन इस दिल को मेहमान किसी का रक्खें
        ग़ज़ल
संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें
ज़करिय़ा शाज़

