EN اردو
सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे | शाही शायरी
sanam jab chira-e-zar-tar bandhe

ग़ज़ल

सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे

सिराज औरंगाबादी

;

सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
झलक सीं कूचा-ओ-बाज़ार बाँधे

हज़ारों तेग़-बंदों कूँ करे क़त्ल
ख़म-ए-अबरू की जब तलवार बाँधे

जो देखे एक-दम ज़ाहिद तिरी ज़ुल्फ़
गले में ज़ोहद का ज़ुन्नार बाँधे

तलब के उक़्दा-ए-मुश्किल कूँ खोले
जो कोशिश की कमर यकबार बाँधे

जो कुइ ग़म का हिसार-ए-क़ल्ब चाहे
ग़ुबार-ए-आह सीं दीवार बाँधे

जो देखे गुल-रुख़ों को को ला-उबाली
बजा है गर लब-ए-इज़हार बाँधे

'सिराज' आँखें किया है ग़ैर सीं बंद
कि ता दिल में ख़याल-ए-यार बाँधे