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सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम | शाही शायरी
sanam hazar hua to wahi sanam ka sanam

ग़ज़ल

सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम

सिराज औरंगाबादी

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सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
कि अस्ल हस्ती-ए-नाबूद है अदम का अदम

इसी जहान में गोया मुझे बहिश्त मिली
अगर रखोगे मिरे पर यही करम का करम

अभी तो तुम ने किए थे हमारी जाँ-बख़्शी
फिर एक दम में वही नीमचा अलम का अलम

वो गुल-बदन का अजब है मिज़ाज-ए-रंगा-रंग
फ़जर कूँ लुत्फ़ तो फिर शाम कूँ सितम का सितम

न रख 'सिराज' किसी ख़ूब-रू सें चश्म-ए-वफ़ा
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम