सलामत रहें दिल में घर करने वाले
इस उजड़े मकाँ में बसर करने वाले
गले पर छुरी क्यूँ नहीं फेर देते
असीरों को बे-बाल-ओ-पर करने वाले
अंधेरे उजाले कहीं तो मिलेंगे
वतन से हमें दर-ब-दर करने वाले
गरेबाँ में मुँह डाल कर ख़ुद तो देखें
बुराई पे मेरी नज़र करने वाले
इस आईना-ख़ाने में क्या सर उठाते
हक़ीक़त पर अपनी नज़र करने वाले
बहार-ए-दो-रोज़ा से दिल क्या बहलता
ख़बर कर चुके थे ख़बर करने वाले
खड़े हैं दो-राहे पे दैर ओ हरम के
तिरी जुस्तुजू में सफ़र करने वाले
सर-ए-शाम गुल हो गई शम-ए-बालीं
सलामत हैं अब तक सहर करने वाले
कुजा सेहन-ए-आलम कुजा कुंज-ए-मरक़द
बसर कर रहे हैं बसर करने वाले
'यगाना' वही फ़ातेह-ए-लखनऊ हैं
दिल-ए-संग-ओ-आहन में घर करने वाले

ग़ज़ल
सलामत रहें दिल में घर करने वाले
यगाना चंगेज़ी