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सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे | शाही शायरी
sajal ki shor zaminon mein aashiyana kare

ग़ज़ल

सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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सजल कि शोर ज़मीनों में आशियाना करे
न जाने अब के मुसाफ़िर कहाँ ठिकाना करे

बस एक बार उसे पढ़ सकूँ ग़ज़ल की तरह
फिर उस के बाद तो जो गर्दिश-ए-ज़माना करे

हवाएँ वो हैं कि हर ज़ुल्फ़ पेचदार हुई
किसे दिमाग़ कि अब आरज़ू-ए-शाना करे

अभी तो रात के सब निगह-दार जागते हैं
अभी से कौन चराग़ों की लौ निशाना करे

सुलूक में भी वही तज़्किरे वही तशहीर
कभी तो कोई इक एहसान ग़ाएबाना करे

मैं सब को भूल गया ज़ख़्म-ए-मुंदमिल की मिसाल
मगर वो शख़्स कि हर बात जारेहाना करे