सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक था
वो दर्द की दवा था दुखन का शरीक था
वो क्या समझ सकेगा मिरे इश्क़ का मक़ाम
जो रूह के सफ़र में बदन का शरीक था
देखी न हम ने जिस की जबीं पर कभी शिकन
वो दिल की एक एक चुभन का शरीक था
इक लम्हे को वो आया तसव्वुर में तो लगा
जैसे वो सारे दिन की थकन का शरीक था
ख़ामोशियों से आज हैं हम महव-ए-गुफ़्तुगू
वो साथ ही नहीं जो सुख़न का शरीक था
अल्लाह उस चराग़ को रौशन रखे सदा
जो तीरगी में पहली किरन का शरीक था
सैराब कर गया किसी आँगन को जो 'अदील'
वो मेरी प्यास मेरी घुटन का शरीक था
ग़ज़ल
सहरा-ओ-दश्त-ओ-सर्व-ओ-समन का शरीक था
अदील ज़ैदी