EN اردو
सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे | शाही शायरी
sahe gham pae raftagan kaise kaise

ग़ज़ल

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे

वाजिद अली शाह अख़्तर

;

सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे
मिरे खो गए कारवाँ कैसे कैसे

वो चितवन वो अबरू वो क़द याद सब है
सुनाऊँ मैं गुज़रे बयाँ कैसे कैसे

मिरे दाग़-ए-सोजाँ का मज़मूँ न सोचो
जले कह के आतिश-ज़बाँ कैसे कैसे

रहा इश्क़ से नाम मजनूँ का वर्ना
तह-ए-ख़ाक हैं बे-निशाँ कैसे कैसे

शब-ए-वस्ल में मह को उर्यां करेंगे
अयाँ होंगे राज़-ए-निहाँ कैसे कैसे

कमर यार की ना-तवानी में ढूँडी
तवहहुम हुए दरमियाँ कैसे कैसे

कलेजे में 'अख़्तर' फफोले पड़े हैं
मिरे उठ गए क़द्र-दाँ कैसे कैसे