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सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़ | शाही शायरी
safar hai mera apne Dar ki taraf

ग़ज़ल

सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़
मिरी एक ज़ात-ए-दिगर की तरफ़

भरे शहर में इक बयाबाँ भी था
इशारा था अपने ही घर की तरफ़

मिरे वास्ते जाने क्या लाएगी
गई है हवा इक खंडर की तरफ़

किनारा ही कटने की सब देर थी
फिसलते गए हम भँवर की तरफ़

कोई दरमियाँ से निकलता गया
न देखा किसी हम-सफ़र की तरफ़

तिरी दुश्मनी ख़ुद ही माइल रही
किसी रिश्ता-ए-बे-ज़रर की तरफ़

रही दिल में हसरत कि 'बानी' चलें
किसी मंज़िल-ए-पुर-ख़तर की तरफ़