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सदा रहेगी यही रवानी रवाँ है पानी | शाही शायरी
sada rahegi yahi rawani rawan hai pani

ग़ज़ल

सदा रहेगी यही रवानी रवाँ है पानी

शब्बीर शाहिद

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सदा रहेगी यही रवानी रवाँ है पानी
बहाओ इस का है जावेदानी रवाँ है पानी

बहाव में बह रहे हैं मौसम निगाह मंज़र
बहाए जाता है सब को पानी रवाँ है पानी

कभी थे इन रास्तों में क़र्ये मकान चेहरे
ये दास्ताँ है मगर पुरानी रवाँ है पानी

न अब वो साहिल न अब वो हस्ती न वो फ़सीलें
न उस ज़मीं की कोई निशानी रवाँ है पानी

वहाँ वो अक़्लीम जिस पे सिक्का रवाँ था अपना
यहाँ हवाओं की हुक्मरानी रवाँ है पानी

वो रात दिन भी इसी रवानी में बह चुके हैं
बिखर चुकीं वो रुतें सुहानी रवाँ है पानी

यहाँ मैं दोहरा रहा हूँ पहले सफ़र की बातें
मगर कहाँ अब वो शादमानी रवाँ है पानी

ये अश्क धुँदला रहे हैं पैहम मिटा रहे हैं
निगाह में याद की कहानी रवाँ है पानी

वो महफ़िलें हैं न अब वो साथी रहे हैं बाक़ी
न अब वो बचपन न वो जवानी रवाँ है पानी