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सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया | शाही शायरी
sada-e-ahd-e-wafa ko zawal kyun aaya

ग़ज़ल

सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया

एजाज़ अासिफ़

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सदा-ए-अहद-ए-वफ़ा को ज़वाल क्यूँ आया
लब-ए-सुकूत पे हर्फ़-ए-सवाल क्यूँ आया

किसे ख़बर कि चमन में ख़िज़ाँ की आमद पर
ग़ुरूर-ए-शोला-ए-गुल को जलाल क्यूँ आया

बुझा रहा था मैं अपने वजूद का ख़ुर्शीद
तिरी निगाह में रंग-ए-मलाल क्यूँ आया

शब-ए-फ़िराक़ ने देखी न थी मिरी सूरत
शब-ए-फ़िराक़ को मेरा ख़याल क्यूँ आया

चुभन है ज़ेहन में 'आसिफ़' कि इस अँधेरे में
उफ़ुक़ के हाथ पे आख़िर हिलाल क्यूँ आया