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सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए | शाही शायरी
sad jalwa ru-ba-ru hai jo mizhgan uThaiye

ग़ज़ल

सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए

मिर्ज़ा ग़ालिब

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सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
ताक़त कहाँ कि दीद का एहसाँ उठाइए

है संग पर बरात-ए-मआश-ए-जुनून-ए-इश्क़
यानी हुनूज़ मिन्नत-ए-तिफ़्लाँ उठाइए

दीवार बार-ए-मिन्नत-ए-मज़दूर से है ख़म
ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब न एहसाँ उठाइए

या मेरे ज़ख़्म-ए-रश्क को रुस्वा न कीजिए
या पर्दा-ए-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ उठाइए

हस्ती फ़रेब-नामा-ए-मौज-ए-सराब है
यक उम्र नाज़-ए-शोख़ी-ए-उनवाँ उठाइए