सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
ताक़त कहाँ कि दीद का एहसाँ उठाइए
है संग पर बरात-ए-मआश-ए-जुनून-ए-इश्क़
यानी हुनूज़ मिन्नत-ए-तिफ़्लाँ उठाइए
दीवार बार-ए-मिन्नत-ए-मज़दूर से है ख़म
ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब न एहसाँ उठाइए
या मेरे ज़ख़्म-ए-रश्क को रुस्वा न कीजिए
या पर्दा-ए-तबस्सुम-ए-पिन्हाँ उठाइए
हस्ती फ़रेब-नामा-ए-मौज-ए-सराब है
यक उम्र नाज़-ए-शोख़ी-ए-उनवाँ उठाइए
ग़ज़ल
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
मिर्ज़ा ग़ालिब