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सबब तलाश न कर बस यूँही है ये दुनिया | शाही शायरी
sabab talash na kar bas yunhi hai ye duniya

ग़ज़ल

सबब तलाश न कर बस यूँही है ये दुनिया

महबूब ख़िज़ां

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सबब तलाश न कर बस यूँही है ये दुनिया
वही बहुत है जो कुछ जानती है ये दुनिया

खुलत में बंद हैं कोंपल के सोते जागते रंग
परत परत में नई दिलकशी है ये दुनिया

उलझते रहने में कुछ भी नहीं थकन के सिवा
बहुत हक़ीर हैं हम तुम बड़ी है ये दुनिया

ये लोग साँस भी लेते हैं ज़िंदा भी हैं मगर
हर आन जैसे इन्हें रोकती है ये दुनिया

बहुत दिनों तो ये शर्मिंदगी थी शामिल-ए-हाल
हमीं ख़राब हैं अच्छी भली है ये दुनिया

हरे-भरे रहें तेरे चमन तिरे गुलज़ार
हरा है ज़ख़्म-ए-तमन्ना भरी है ये दुनिया

तुम अपनी लहर में हो और किसी भँवर की तरह
मैं दूसरा हूँ कोई तीसरी है ये दुनिया

वो अपने साथ भी रहते हैं चुप भी रहते हैं
जिन्हें ख़बर है कि क्या बेचती है ये दुनिया

'ख़िज़ाँ' न सोच कि बिकती है क्यूँ बदन की बहार
समझ कि रूह की सौदा-गरी है ये दुनिया