सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है
ये मौसम और वीराँ मय-कदा है
गिरफ़्तार-ए-ख़म-ओ-काकुल है कोई
ग़म-ए-दौराँ में कोई मुब्तला है
नहीं है बेवफ़ाई की शिकायत
तुम्हारी कम-निगाही का गिला है
रह-ए-हस्ती से मर्ग-ए-ना-गहाँ तक
फ़क़त दो ही क़दम का फ़ासला है
ये दुनिया इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत
ये दुनिया हासिल-ए-कर्ब-ओ-बला है
बदल डाला निज़ाम-ए-जान-ओ-दिल को
ये सब मेरे जुनूँ का हौसला है
ग़ज़ल
सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है
बशीर फ़ारूक़