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सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है | शाही शायरी
saba gul-e-rez jaan-parwar faza hai

ग़ज़ल

सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है

बशीर फ़ारूक़

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सबा गुल-ए-रेज़ जाँ-परवर फ़ज़ा है
ये मौसम और वीराँ मय-कदा है

गिरफ़्तार-ए-ख़म-ओ-काकुल है कोई
ग़म-ए-दौराँ में कोई मुब्तला है

नहीं है बेवफ़ाई की शिकायत
तुम्हारी कम-निगाही का गिला है

रह-ए-हस्ती से मर्ग-ए-ना-गहाँ तक
फ़क़त दो ही क़दम का फ़ासला है

ये दुनिया इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत
ये दुनिया हासिल-ए-कर्ब-ओ-बला है

बदल डाला निज़ाम-ए-जान-ओ-दिल को
ये सब मेरे जुनूँ का हौसला है