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सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए | शाही शायरी
sab log liye sang-e-malamat nikal aae

ग़ज़ल

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

अहमद फ़राज़

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सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए
किस शहर में हम अहल-ए-मोहब्बत निकल आए

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए

हर घर का दिया गुल न करो तुम कि न जाने
किस बाम से ख़ुर्शीद-ए-क़यामत निकल आए

जो दरपय-ए-पिंदार हैं उन क़त्ल-गहों से
जाँ दे के भी समझो कि सलामत निकल आए

ऐ हम-नफ़सो कुछ तो कहो अहद-ए-सितम की
इक हर्फ़ से मुमकिन है हिकायत निकल आए

यारो मुझे मस्लूब करो तुम कि मिरे बाद
शायद कि तुम्हारा क़द-ओ-क़ामत निकल आए