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साथ रोने न सही गीत सुनाने आते | शाही शायरी
sath rone na sahi git sunane aate

ग़ज़ल

साथ रोने न सही गीत सुनाने आते

रम्ज़ी असीम

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साथ रोने न सही गीत सुनाने आते
तुम मुसीबत में मिरा हाथ बटाने आते

उम्र भर जाग के आँखों की हिफ़ाज़त की है
जाने कब लोग मिरे ख़्वाब चुराने आते

खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना
कितने दरिया ही मिरी प्यास बुझाने आते

साथ तो ख़ैर निभाना तुम्हें आता ही नहीं
कम से कम राह में दीवार उठाने आते

ख़ौफ़ आता है बयाबाँ की तरफ़ जाने से
वर्ना कितने ही मिरे हाथ ख़ज़ाने आते