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साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई | शाही शायरी
sath rahte itni muddat ho gai

ग़ज़ल

साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई

हफ़ीज़ जौनपुरी

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साथ रहते इतनी मुद्दत हो गई
दर्द को दिल से मोहब्बत हो गई

क्या जवानी जल्द रुख़्सत हो गई
इक छलावा थी कि चम्पत हो गई

दिल की गाहक अच्छी सूरत हो गई
आँख मिलते ही मोहब्बत हो गई

फ़ातिहा पढ़ने वो आए आज क्या
ठोकरों की नज़्र तुर्बत हो गई

लाख बीमारी है इक परहेज़-ए-मय
जान जोखों तर्क-ए-आदत हो गई

तफ़रक़ा डाला फ़लक ने बार-हा
दो दिलों में जब मोहब्बत हो गई

वो गिला सुन कर हुए यूँ मुन्फ़इल
आएद अपने सर शिकायत हो गई

दोस्ती क्या उस तलाव्वुन-तबा की
चार दिन साहब सलामत हो गई

वाह रे आलम कमाल-ए-इश्क़ का
मेरी उन की एक सूरत हो गई

उन के जाते ही हुई काया पलट
ख़म मसर्रत यास हसरत हो गई

पी के यूँ तुम कब बहकते थे 'हफ़ीज़'
रात क्या बे-लुत्फ़ सोहबत हो गई