सारे कुश्तों से जुदा ढंग इज़्तिराब-ए-दिल का है 
क्यूँ न हो बिस्मिल भी तो किस चुलबुले क़ातिल का है 
छुप नहीं सकता वो ख़ून अपने दिल-ए-बिस्मिल का है 
मिट नहीं सकता जो धब्बा दामन-ए-क़ातिल का है 
इम्तिहाँ मद्द-ए-नज़र किस मनचले बिस्मिल का है 
मा'रका आरा जो यूँ हर नाज़ उस क़ातिल का है 
बे-इजाज़त उठ के सीना से लगाए आप को 
हौसला इतना भी इक अरमान वाले दिल का है 
आप को याद आ गईं हैं किस की बज़्म-आराइयाँ 
हज़रत-ए-दिल कहिए तो क़स्द आज किस महफ़िल का है 
उस तरफ़ मचला हुआ है वस्ल में वो चुलबुला 
इस तरफ़ जोश-ए-इज़्तिराब आरज़ू-ए-दिल का है 
वस्ल की शब ख़ून करना आरज़ू-ए-वस्ल का 
ओ तमन्नाओं के दुश्मन काम ये क़ातिल का है 
मार्का-आराईयाँ हैं आज हुस्न-ओ-इश्क़ की 
सामना इस जल्वा-गह में दिलरुबा से दिल का है 
अपने आधी रात को आने का बाइ'स क्यूँ बने 
वो कहीं क़ाइल भी जज़्ब-ए-उल्फ़त-ए-कामिल का है 
मौत आई है मुझे ओ बहर-ए-ख़ूबी वस्ल में 
मेरा बेड़ा डूबने वाला लब-ए-साहिल का है 
सीना से सीना मिला देना तो कुछ मुश्किल नहीं 
यार मुश्किल तो तिरे दिल से मिलाना दिल का है 
शोख़ी-ए-क़ातिल में है बिस्मिल का रंग-ए-इज़्तिराब 
रंग बिस्मिल की तड़प में शोख़ी-ए-क़ातिल का है
 
        ग़ज़ल
सारे कुश्तों से जुदा ढंग इज़्तिराब-ए-दिल का है
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

