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साक़ी जो दिए जाए ये कह कर कि पिए जा | शाही शायरी
saqi jo diye jae ye kah kar ki piye ja

ग़ज़ल

साक़ी जो दिए जाए ये कह कर कि पिए जा

रसा रामपुरी

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साक़ी जो दिए जाए ये कह कर कि पिए जा
तो मैं भी पिए जाऊँ ये कह कर कि दिए जा

जाने की जो ज़िद है तो मुझे ज़हर दिए जा
इतना तो कहा मान ले इतना तो किए जा

कुछ और न कर मुझ पे जफ़ाएँ तू किए जा
कुछ और न ले मेरी दुआएँ तू लिए जा

क्या लज़्ज़त-ए-ताज़ीर ने मजबूर किया है
आता है यही जी में कि तक़्सीर किए जा

कम्बख़्त 'रसा' तेरी रसाई नहीं उन तक
तू ख़ूब सा उस नाम को बद-नाम किए जा