सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए
क्या करे वो जिस का दिल पत्थर बने और टूट जाए
हाए रे उन के फ़रेब-ए-वादा-ए-फ़र्दा का जाल
देखते ही देखते इक दर बने और टूट जाए
हादसों की ठोकरों से चूर होना है तो फिर
क्यूँ न ख़ामोशी से दिल साग़र बने और टूट जाए
हम भी ले लें लुत्फ़-ए-तीर-ए-नीम-कश गर वो नज़र
आते आते क़ल्ब तक ख़ंजर बने और टूट जाए
उन के दामन की हवा भी किस को होती है नसीब
आज हर आँसू मिरा गौहर बने और टूट जाए
यूँ बिखरता ही रहा ऐ 'तर्ज़' हर सपना मिरा
सुब्ह जैसे ख़्वाब का मंज़र बने और टूट जाए
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ग़ज़ल
सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए
गणेश बिहारी तर्ज़