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साहिल पे लाई और सफ़ीने डुबो दिए | शाही शायरी
sahil pe lai aur safine Dubo diye

ग़ज़ल

साहिल पे लाई और सफ़ीने डुबो दिए

शमीम जयपुरी

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साहिल पे लाई और सफ़ीने डुबो दिए
यूँ ज़िंदगी ने हम को हँसाया कि रो दिए

अहल-ए-चमन ने जश्न-ए-बहाराँ के नाम से
वो दास्ताँ सुनाई कि दामन भिगो दिए

ज़ब्त-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ की मजबूरियाँ न पूछ
दिल में किसी का नाम लिया और रो दिए

फ़रियाद की है बात मगर अब सुनेगा कौन
इक नाख़ुदा ने कितने सफ़ीने डुबो दिए

ऐ वाए-सई-ए-ज़ब्त कि अक्सर तिरे हुज़ूर
हँसने का एहतिमाम किया और रो दिए

उन आँसुओं का देखने वाला कोई न था
जिन आँसुओं में हम ने तबस्सुम समो दिए

राह-ए-जुनूँ में काम ख़िरद से लिया ही था
ज़ोफ़-ए-तलब ने पाँव में काँटे चुभो दिए

तज्दीद-ए-अहद-ए-इश्क़ हुई आज यूँ 'शमीम'
नज़रें मिलीं सलाम किया और रो दिए