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रूह हाज़िर है मिरे यार कोई मस्ती हो | शाही शायरी
ruh hazir hai mere yar koi masti ho

ग़ज़ल

रूह हाज़िर है मिरे यार कोई मस्ती हो

नदीम भाभा

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रूह हाज़िर है मिरे यार कोई मस्ती हो
हल्क़ा-ए-रक़्स है तय्यार कोई मस्ती हो

मुझ को मिट्टी के पियाले में पिला ताज़ा शराब
जिस्म होने लगा बे-कार कोई मस्ती हो

चार सम्तों ने तिरे हिज्र के घुंघरू बाँधे
और हम लोग भी हैं चार कोई मस्ती हो

मैं मन-ओ-तू के सहीफ़ों की तिलावत करूँगा
बे-वज़ू हूँ मिरी सरकार कोई मस्ती हो

कोई वाइज़ न वज़ीफ़ा कि कोई सौम-ओ-सलात
जान छूटे मिरी इक बार कोई मस्ती हो

तेरे एहसास की शिद्दत से भरा बैठा हूँ
अब न इंकार न इक़रार कोई मस्ती हो

बे-नियाज़ाना रहेगा तिरी दुनिया में फ़क़ीर
ख़्वाब-ओ-ख़्वाहिश नहीं दरकार कोई मस्ती हो