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रूह-ए-एहसास है तही-दामन | शाही शायरी
ruh-e-ehsas hai tahi-daman

ग़ज़ल

रूह-ए-एहसास है तही-दामन

नासिर ज़ैदी

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रूह-ए-एहसास है तही-दामन
दिल है या हसरतों का इक मदफ़न

फैलती जा रही है तारीकी
शाम महसूस कर रही है थकन

मुल्तफ़ित जब से है नज़र उन की
दिल को दर-पेश है नई उलझन

मेरी यादों से गुल-ब-दामाँ है
एक ज़ोहरा-जमाल का आँगन

आदमियत कहीं न हो रुस्वा
ज़िंदगी का बदल रहा है चलन

हर सितारा मिरे मुक़द्दर का
उन के माथे की बन गया है शिकन

लुट चुका हूँ रह-ए-तमन्ना में
आरज़ू अब तो छोड़ दे दामन

किस को अपना कहें कि ऐ 'नासिर'
हर हसीं शख़्स है वफ़ा दुश्मन