रूह-ए-एहसास है तही-दामन
दिल है या हसरतों का इक मदफ़न
फैलती जा रही है तारीकी
शाम महसूस कर रही है थकन
मुल्तफ़ित जब से है नज़र उन की
दिल को दर-पेश है नई उलझन
मेरी यादों से गुल-ब-दामाँ है
एक ज़ोहरा-जमाल का आँगन
आदमियत कहीं न हो रुस्वा
ज़िंदगी का बदल रहा है चलन
हर सितारा मिरे मुक़द्दर का
उन के माथे की बन गया है शिकन
लुट चुका हूँ रह-ए-तमन्ना में
आरज़ू अब तो छोड़ दे दामन
किस को अपना कहें कि ऐ 'नासिर'
हर हसीं शख़्स है वफ़ा दुश्मन
ग़ज़ल
रूह-ए-एहसास है तही-दामन
नासिर ज़ैदी