रूह-ए-ज़माँ मकाँ मिले राज़-ए-अयाँ निहाँ मिले 
कब से हूँ गर्म-ए-जुस्तुजू मंज़िल-ए-कुन-फ़काँ मिले 
नादिरा-ए-ज़माँ मिले नाबिग़ा-ए-जहाँ मिले 
जिस को मैं ढूँढता हूँ वो नाज़िश-ए-मह-वशाँ मिले 
नाला-ए-अर्ग़वाँ मिले शो'ला-ए-अर्ग़वाँ मिले 
साइक़ा-ए-तपाँ मिले जलवा-ए-बे-अमाँ मिले 
काकुल-ए-कहकशाँ खुले आरिज़-ए-ला-मकाँ मिले 
दिलबर-ए-हस्त-ओ-बूद का काश कहीं निशाँ मिले 
यूँ तो हमें हज़ार-हा जल्वे जहाँ-तहाँ मिले 
जिस की मगर तलाश है देखिए कब कहाँ मिले 
ढूँड रहे हैं आज तक जिन को वही कहाँ मिले 
वर्ना रह-ए-हयात में सैंकड़ों कारवाँ मिले 
शो'ला-फ़िशाँ ज़मीन पर सैंकड़ों आसमाँ मिले 
दिल को जहाँ सकूँ मिले काश वो आस्ताँ मिले 
मेरी नज़र में कम नहीं वो भी किसी से ख़ुश-नसीब 
जिस को ग़म-ए-फ़िराक़ की दौलत-ए-बेकराँ मिले 
वज्ह-ए-नशात-ए-शौक़ है कितना हसीं वो एक ग़म 
यूँ तो यहाँ हज़ार-हा रोज़-ए-ग़म निहाँ मिले 
सोच रहे हैं आज हम अपनी भी क़द्र क्या है कम 
वो हमें गर न मिल सके हम भी उन्हें कहाँ मिले 
उन के लिए गुल-ओ-बहार और हमें ख़िज़ाँ-ओ-ख़ार 
उन को भी गुल्सिताँ मिले हम को भी गुल्सिताँ मिले 
सोज़-ओ-गुदाज़-ओ-दर्द-ओ-ग़म हसरत-ओ-दिल-शिकस्तगी 
ज़ीस्त में कितने क़ीमती हम को ये अरमुग़ाँ मिले 
क़र्या-ब-क़र्या शहर शहर टूट रहा है आज क़हर 
चीख़ उठी है रूह-ए-दहर काश कहीं अमाँ मिले 
शम-ए-जुनूँ लिए हुए ढूँड रहा है शहर शहर 
अहद-ए-ख़िरद में 'राज़' को कोई तो राज़दाँ मिले
        ग़ज़ल
रूह-ए-ज़माँ मकाँ मिले राज़-ए-अयाँ निहाँ मिले
ख़लीलुर्रहमान राज़

