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रूह बख़्शी है काम तुझ लब का | शाही शायरी
ruh baKHshi hai kaam tujh lab ka

ग़ज़ल

रूह बख़्शी है काम तुझ लब का

वली मोहम्मद वली

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रूह बख़्शी है काम तुझ लब का
दम-ए-ईसा है नाम तुझ लब का

हुस्न के ख़िज़्र ने किया लबरेज़
आब-ए-हैवाँ सूँ जाम तुझ लब का

मंतिक़-ओ-हिक्मत-ओ-मआ'नी पर
मुश्तमिल है कलाम तुझ लब का

जन्नत-ए-हुस्न में किया हक़ ने
हौज़-ए-कौसर मक़ाम तुझ लब का

रग-ए-याक़ूत के क़लम सूँ लिखें
ख़त परिस्ताँ पयाम तुझ लब का

सब्ज़ा-ओ-बर्ग-ओ-लाला रखते हैं
शौक़ दिल में दवाम तुझ लब का

ग़र्क़-ए-शक्कर हुए हैं काम-ओ-ज़बाँ
जब लिया हूँ मैं नाम तुझ लब का

मिस्ल-ए-याक़ूत ख़त में है शागिर्द
साग़र-ए-मय मुदाम तुझ लब का

है 'वली' की ज़बाँ को लज़्ज़त-बख़्श
ज़िक्र हर सुब्ह-ओ-शाम तुझ लब का