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रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता | शाही शायरी
ru-e-zeba nazar nahin aata

ग़ज़ल

रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता

हसरत शरवानी

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रू-ए-ज़ेबा नज़र नहीं आता
अपना जीना नज़र नहीं आता

लाफ़-ए-उल्फ़त बहुत ज़माने में
मरने वाला नज़र नहीं आता

दर्द-ए-दिल की दवा है जिस की नज़र
वो मसीहा नज़र नहीं आता

गुल-ओ-गुलशन से क्या तसल्ली हो
गुल-ए-रा'ना नज़र नहीं आता

फूल बूटे बहुत हैं गुलशन में
सर्व-ए-बाला नज़र नहीं आता

तब-ए-मव्वाज के मुक़ाबिल हो
ऐसा दरिया नज़र नहीं आता

जिस पे मिट जाने की तमन्ना है
वो सरापा नज़र नहीं आता

छान डाला जहान उस के लिए
नहीं आता नज़र नहीं आता

जिस में वहशत के हौसले निकलें
ऐसा सहरा नज़र नहीं आता

थक गई तारे गिनते गिनते निगाह
माह-सीमा नज़र नहीं आता

जिस में सूरत-नुमा हो नक़्श-ए-मुराद
ऐसा नक़्शा नज़र नहीं आता

लाखों जल्वा नज़र में हैं 'हसरत'
जल्वा-फ़रमा नज़र नहीं आता