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रुत बदले तो आप बदल ले सब व्यवहार हवा | शाही शायरी
rut badle to aap badal le sab bewhaar hawa

ग़ज़ल

रुत बदले तो आप बदल ले सब व्यवहार हवा

अदीब सुहैल

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रुत बदले तो आप बदल ले सब व्यवहार हवा
पग पग साँग रचाए मौसम के अनुसार हवा

पेड़ घरौंदे लाठ और खम्बे हैं ख़ाशाक समान
भैरों नाच रही है पहने नाग का हार हवा

उस की गिर्हें खोले बढ़ कर कोई ध्यान की लहर
मन में लिए फिरती है सदियों के असरार हवा

इस वीराने में भी खुलते पग पग रम के फूल
दिल से कभी हो कर भी गुज़रती ख़ुश-रफ़्तार हवा

कौन बताए कब किस की इस राह में शामत आए
सुनते हैं अंधे के हाथ की है तलवार हवा

हम ने तो इस लम्हे में भी रुत का समेटा दर्द
रविश रविश जब रवाँ-दवाँ थी सरसर-कार हुआ

यूँ भी हम ने झेला है मौसम का जब्र 'सुहैल'
ख़ुश्बू की कभी लहर बनी कभी तेग़ की धार हवा