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रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे | शाही शायरी
ruswa-e-ishq mein tera shaida kahen jise

ग़ज़ल

रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे

साहिर देहल्वी

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रुस्वा-ए-इश्क़ में तिरा शैदा कहें जिसे
उश्शाक़ में मिसाल है रुस्वा कहें जिसे

सीना चमन है ग़ुंचा-ए-दिल है शगुफ़्ता-दिल
तेरी निगाह है चमन-आरा कहें जिसे

ग़म परवरीदा है दिल-ए-शोरीदगान-ए-इश्क़
फ़ुर्क़त की एक रात है दुनिया कहें जिसे

मंसूब कुफ़्र दैर से ईमाँ हरम से है
इक रह गया हूँ मैं कि तुम्हारा कहें जिसे

हम ग़ैर-मो'तबर सही और ग़ैर मो'तबर
कहना बजा है आप का जैसा कहें जिसे

'साहिर' नफ़स वो दाम है जिस में कि है असीर
मौज-ए-दम-ए-ख़याल कि अन्क़ा कहें जिसे