रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
दिल से ख़याल-ए-तंगी-ए-दामाँ गया नहीं
जो कुछ हैं संग-ओ-ख़िश्त हैं या गर्द-ए-रह-गुज़र
तुम तक जो आए उन का कोई नक़्श-ए-पा नहीं
हर आस्ताँ पे लिख्खा है अब नाम-ए-शहर-यार
वाबिस्तगान-ए-दिल कै लिए कोई जा नहीं
सद-हैफ़ उस के हाथ है हर ज़ख़्म का रफ़ू
दामन में जिस के एक भी तार-ए-वफ़ा नहीं
ग़ज़ल
रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं
ज़ेहरा निगाह