EN اردو
रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे | शाही शायरी
ruk gaya aankh se bahta hua dariya kaise

ग़ज़ल

रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे

कृष्ण बिहारी नूर

;

रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे
ग़म का तूफ़ाँ तो बहुत तेज़ था ठहरा कैसे

हर घड़ी तेरे ख़यालों में घिरा रहता हूँ
मिलना चाहूँ तो मिलूँ ख़ुद से मैं तन्हा कैसे

मुझ से जब तर्क-ए-तअल्लुक़ का किया अहद तो फिर
मुड़ के मेरी ही तरफ़ आप ने देखा कैसे

मुझ को ख़ुद पर भी भरोसा नहीं होने पाता
लोग कर लेते हैं ग़ैरों पे भरोसा कैसे

दोस्तों शुक्र करो मुझ से मुलाक़ात हुई
ये न पूछो कि लुटी है मिरी दुनिया कैसे

देखी होंटों की हँसी ज़ख़्म न देखे दिल के
आप दुनिया की तरफ़ खा गए धोका कैसे

आप भी अहल-ए-ख़िरद अहल-ए-जुनूँ थे मौजूद
लुट गए हम भी तिरी बज़्म में तन्हा कैसे

इस जनम में तो कभी मैं न उधर से गुज़रा
तेरी राहों में मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कैसे

आँख जिस जा पे भी पड़ती है ठहर जाती है
लिखना चाहूँ तो लिखूँ तेरा सरापा कैसे

ज़ुल्फ़ें चेहरे से हटा लो कि हटा दूँ मैं ख़ुद
'नूर' के होते हुए इतना अंधेरा कैसे