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रोज़ कहता है मुझे चल दश्त में | शाही शायरी
rose kahta hai mujhe chal dasht mein

ग़ज़ल

रोज़ कहता है मुझे चल दश्त में

राज़िक़ अंसारी

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रोज़ कहता है मुझे चल दश्त में
ले न जाए दिल ये पागल दश्त में

दर्ज होनी है नई आमद कोई
हो रही है ख़ूब हलचल दश्त में

एक मैं हूँ एक हैं मजनूँ-मियाँ
हो गए दो लोग टोटल दश्त में

इश्क़ में अपने अधूरापन जो था
हो गया आ के मुकम्मल दश्त में

रात-भर आवारगी करते रहे
एक मैं इक चाँद पागल दश्त में