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रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया | शाही शायरी
ro ke in aankhon ne dariya kar diya

ग़ज़ल

रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया
अब्र को पानी से पतला कर दिया

हुस्न है इक फ़ित्नागर उस ने वहीं
जिस को चाहा उस को रुस्वा कर दिया

तुम ने कुछ साक़ी की कल देखी अदा
मुझ को साग़र-ए-मय का छलका कर दिया

बैठे-बैठे फिर गईं आँखें मिरी
मुझ को इन आँखों ने ये क्या कर दिया

उस ने जब मुझ पर चलाई तेग़ हाए
क्यूँ मैं अपना हाथ ऊँचा कर दिया

'मुसहफ़ी' के देख यूँ चेहरे का रंग
इश्क़ ने क्या उस का नक़्शा कर दिया