रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
हर साज़िश के पीछे अपने निकलेंगे
चाँद सितारे गोद में आ कर बैठ गए
सोचा ये था पहली बस से निकलेंगे
सब उम्मीदों के पीछे मायूसी है
तोड़ो ये बादाम भी कड़वे निकलेंगे
मैं ने रिश्ते ताक़ पे रख कर पूछ लिया
इक छत पर कितने परनाले निकलेंगे
जाने कब ये दौड़ थमेगी साँसों की
जाने कब पैरों से जूते निकलेंगे
हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
हर संदूक़ में तेरे कपड़े निकलेंगे
अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे
ग़ज़ल
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
शकील जमाली