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रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा | शाही शायरी
rishte mein teri zulf ke hai jaan hamara

ग़ज़ल

रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा

सिराज औरंगाबादी

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रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा
बेजा नहीं सुम्बुल के उपर मान हमारा

सरमा-ए-आशुफ़्ता-दिली जम्अ हुआ है
आ देख सनम हाल-ए-परेशान हमारा

जिऊँ सूरत-ए-दीवार हुआ महव-ए-तमन्ना
मुश्ताक़ तिरा है दिल-ए-हैरान हमारा

दरपेश है हम कूँ सफ़र-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद
बस आह-ए-सहर-गाह ये सामान हमारा

तेरे लब-ए-शीरीं की सुना जब सीं हिकायत
काशाना-ए-ज़ंबूर हुआ कान हमारा

मजनूँ की तरह वहशी सहरा-ए-जुनूँ नहीं
है वुसअत-ए-मशरब सेती मैदान हमारा

कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
क़ुर्बान है इस कुफ़्र पर ईमान हमारा

आज़ाद किए क़ैद सीं तस्बीह की उस कूँ
है गर्दन-ए-ज़ुन्नार पे एहसान हमारा

सीना के तबक़ में है कबाब-ए-दिल-ए-पुर-सोज़
जिस दिन से ग़म-ए-हिज्र है मेहमान हमारा

ऐ शोख़ कशिश सीं तिरे अबरू की कमाँ की
दिल हाथ सीं जाता है हर इक आन हमारा

ऐ जान-ए-'सिराज' एक ग़ज़ल दर्द की सुन जा
मजमूआ-ए-अहवाल है दीवान हमारा