रौशन है बज़्म-ए-शोला-रुख़ाँ देखते चलें
इस में वो एक नूर-ए-जहाँ देखते चलें
वा हो रही है मय-कदा-ए-नीम-शब की आँख
अंगड़ाई ले रहा है जहाँ देखते चलें
सरगोशियों की रात है रुख़्सार ओ लब की रात
अब हो रही है रात जवाँ देखते चलें
दिल में उतर के सैर-ए-दिल-ए-रह-रवाँ करें
आहों में ढल के ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते चलें
कैसे हैं ख़ानक़ाह में अर्बाब-ए-ख़ानक़ाह
किस हाल में है पीर-ए-मुग़ाँ देखते चलें
माज़ी की यादगार सही याद-ए-दिल तो है
तर्ज़-ए-नशात-ए-नौहा-गराँ देखते चलें
सब वसवसे हैं गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ के साथ
आगे है मिशअलों का धुआँ देखते चलें
आँचल से उड़ रहे हैं फ़ज़ाओं में दूर दूर
शायद वही हो जान-ए-बुताँ देखते चलें
आ ही गए हैं रक़्स-गह-ए-गुल-रुख़ाँ में हम
कुछ रंग-ओ-बू का सैल-ए-रवाँ देखते चलें
ग़ज़ल
रौशन है बज़्म-ए-शोला-रुख़ाँ देखते चलें
मख़दूम मुहिउद्दीन