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रौनक़ें थीं जहाँ में क्या क्या कुछ | शाही शायरी
raunaqen thin jahan mein kya kya kuchh

ग़ज़ल

रौनक़ें थीं जहाँ में क्या क्या कुछ

नासिर काज़मी

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रौनक़ें थीं जहाँ में क्या क्या कुछ
लोग थे रफ़्तगाँ में क्या क्या कुछ

अब की फ़स्ल-ए-बहार से पहले
रंग थे गुलिस्ताँ में क्या क्या कुछ

क्या कहूँ अब तुम्हें ख़िज़ाँ वालो
जल गया आशियाँ में क्या क्या कुछ

दिल तिरे बा'द सो गया वर्ना
शोर था इस मकाँ में क्या क्या कुछ