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रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी | शाही शायरी
raston pe na baiTho ki hawa tang karegi

ग़ज़ल

रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी

सफ़दर सलीम सियाल

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रस्तों पे न बैठो कि हवा तंग करेगी
बिछड़े हुए लोगों की सदा तंग करेगी

आसाब पे पहरे न बिठा सुब्ह-ए-सफ़र है
टूटेगा बदन और क़बा तंग करेगी

मत टूट के चाहो उसे आग़ाज़-ए-सफ़र में
बिछड़ेगा तो इक एक अदा तंग करेगी

इतना भी उसे याद न कर शाम-ए-ग़रीबाँ
महकेगी फ़ज़ा बू-ए-हिना तंग करेगी

ख़्वाबों के जज़ीरे से निकलना ही पड़ेगा
जिस सम्त गए बू-ए-क़बा तंग करेगी

पुर-हब्स शबों में अभी नींदें नहीं उतरीं
नींद आई तो फिर बाद-ए-सबा तंग करेगी

ख़ुद-सर है अगर वो तो मरासिम न बढ़ाओ
ख़ुद्दार अगर हो तो अना तंग करेगी