रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए
चलिए शुक्र-ए-चाक-दामाँ कीजिए
उज़्र-ए-बेताबी का सामाँ कीजिए
होश बे-होशी पे क़ुर्बां कीजिए
आज फिर रख कर बिना-ए-आशियाँ
जी में है बिजली को मेहमाँ कीजिए
बे-नियाज़-ए-हिस है मेरी बे-ख़ुदी
दर्द ही कब है कि दरमाँ कीजिए
क़िस्सा-ए-दिल लिख चुके 'मानी' बस अब
ख़ूँ के आँसू ज़ेब-ए-उनवाँ कीजिए
ग़ज़ल
रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए
मानी जायसी