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रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए | शाही शायरी
ranj kyun ai mah-e-kanan kijiye

ग़ज़ल

रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए

मानी जायसी

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रंज क्यूँ ऐ माह-ए-कनआँ कीजिए
चलिए शुक्र-ए-चाक-दामाँ कीजिए

उज़्र-ए-बेताबी का सामाँ कीजिए
होश बे-होशी पे क़ुर्बां कीजिए

आज फिर रख कर बिना-ए-आशियाँ
जी में है बिजली को मेहमाँ कीजिए

बे-नियाज़-ए-हिस है मेरी बे-ख़ुदी
दर्द ही कब है कि दरमाँ कीजिए

क़िस्सा-ए-दिल लिख चुके 'मानी' बस अब
ख़ूँ के आँसू ज़ेब-ए-उनवाँ कीजिए