रंज खींचे थे दाग़ खाए थे
दिल ने सदमे बड़े उठाए थे
पास-ए-नामूस-ए-इश्क़ था वर्ना
कितने आँसू पलक तक आए थे
वही समझा न वर्ना हम ने तो
ज़ख़्म छाती के सब दिखाए थे
अब जहाँ आफ़्ताब में हम हैं
याँ कभू सर्व ओ गुल के साए थे
कुछ न समझे कि तुझ से यारों ने
किस तवक़्क़ो पे दिल लगाए थे
फ़ुर्सत-ए-ज़िंदगी से मत पूछो
साँस भी हम न लेने पाए थे
'मीर' साहब रुला गए सब को
कल वे तशरीफ़ याँ भी लाए थे
ग़ज़ल
रंज खींचे थे दाग़ खाए थे
मीर तक़ी मीर