रंज इस का नहीं कि हम टूटे 
ये तो अच्छा हुआ भरम टूटे 
एक हल्की सी ठेस लगते ही 
जैसे कोई गिलास हम टूटे 
आई थी जिस हिसाब से आँधी 
इस को सोचो तो पेड़ कम टूटे 
लोग चोटें तो पी गए लेकिन 
दर्द करते हुए रक़म टूटे 
आईने आईने रहे गरचे 
साफ़-गोई में दम-ब-दम टूटे 
शाएरी इश्क़ भूक ख़ुद्दारी 
उम्र भर हम तो हर क़दम टूटे 
बाँध टूटा नदी का कुछ ऐसे 
जिस तरह से कोई क़सम टूटे 
एक अफ़्वाह थी सभी रिश्ते 
टूटना तय था और हम टूटे 
ज़िंदगी कंघियों में ढाल हमें 
तेरी ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म टूटे 
तुझ पे मरते हैं ज़िंदगी अब भी 
झूट लिक्खें तो ये क़लम टूटे
        ग़ज़ल
रंज इस का नहीं कि हम टूटे
सूर्यभानु गुप्त

