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रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का | शाही शायरी
rang maila na hua jama-e-uryani ka

ग़ज़ल

रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का

शाह नसीर

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रंग मैला न हुआ जामा-ए-उर्यानी का
सर-ओ-सामाँ है हमें बे-सर-ओ-सामानी का

आईना देखे है वो और उसे आईना
ज़ोर आलम है दिला आलम-ए-हैरानी का

दम-ए-हस्ती पे हबाब अपनी अबस उभरे था
आँख खुलते ही मक़ाम उस पे खुला फ़ानी का

तिश्नगी ख़ाक बुझे अश्क की तुग़्यानी से
ऐन बरसात में बिगड़े है मज़ा पानी का

ज़ुल्फ़ गर खींच सके यार के तू शाने से
हाथ यक-दस्त क़लम कीजिएगा 'मानी' का

झड़ गई अबर-ए-बहारी की भी शेख़ी लेकिन
न घटा ज़ोर मिरे अश्क की तुग़्यानी का

ऐ जुनूँ रोज़ रहे है मिरे दामन से लगा
हूँ क़दम-बोस न क्यूँ ख़ार-ए-बयाबानी का

क्यूँ न अंगुश्त-नुमा होवे हिलाल-अबरू
ज़ोर आलम है तिरे क़श्क़ा-ए-पेशानी का

दिल न छुट ज़ुल्फ़-ए-बुताँ चश्म का बाँधे है ख़याल
याद मज़मूँ है परेशाँ को परेशानी का

जाम-ओ-मीना जो बने आबला ओ दाग़ 'नसीर'
दिल ने सामान किया किस की ये मेहमानी का