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रखता है गो क़दीम से बुनियाद आगरा | शाही शायरी
rakhta hai go qadim se buniyaad aagara

ग़ज़ल

रखता है गो क़दीम से बुनियाद आगरा

नज़ीर अकबराबादी

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रखता है गो क़दीम से बुनियाद आगरा
अकबर के नाम से हुआ आबाद आगरा

याँ के खंडर न और जगह की इमारतें
यारो अजब मक़ाम है दिल-शाद आगरा

शद्दाद ज़र लगा न बनाता बहिश्त को
गर जानता कि होवेगा आबाद आगरा

तोड़े कोई क़िले को कोई लूटे शहर को
अब किस से अपनी माँगे भला दाद आगरा

अब तो ज़रा सा गाँव है बेटी न दे इसे
लगता था वर्ना चीन का दामाद आगरा

यक-बारगी तो अब मुझे या-रब तू फिर बसा
करता है अब ख़ुदा से ये फ़रियाद आगरा

इक ख़ूब-रू नहीं है यहाँ वर्ना एक दिन
था रश्क-ए-हुस्न-ए-बल्ख़-व-नौशाद आगरा

हरगिज़ वतन की याद न आवे उसे कभी
जो कर के अपनी जाँ को करे शाद आगरा

इस में सदा ख़ुशी से रहा है तिरा 'नज़ीर'
या-रब हमेशा रखियो तो आबाद आगरा