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रहरव से सरोकार न मंज़िल की ख़बर है | शाही शायरी
rahraw se sarokar na manzil ki KHabar hai

ग़ज़ल

रहरव से सरोकार न मंज़िल की ख़बर है

जौहर ज़ाहिरी

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रहरव से सरोकार न मंज़िल की ख़बर है
दीवाना-ए-उलफ़त है कि सरगर्म-ए-सफ़र है

वाँ चाह नहीं मिलती है याँ चैन नहीं है
तस्कीन-ए-दिल-ए-ज़ार इधर है न उधर है

ज़र्रे हैं कि गरमाए हुए नूर के तारे
इक बर्क़-ए-तपाँ है कि तिरी राहगुज़र है

एक एक अदा होश-तलब दुश्मन-ए-ईमाँ
वो यूसुफ़-ए-सानी ब-ख़ुदा रश्क-ए-क़मर है

आ मेरे जहाँ में मिरी दुनिया की तमन्ना
अब मेरी मुरादों का जहाँ ज़ेर-ओ-ज़बर है

गुम-गश्ता-ए-मंज़िल हूँ मोहब्बत में कुछ ऐसा
बिखरा हुआ शीराज़ा-ए-तसकीन-ए-नज़र है

'जौहर' ये ग़म-ए-राह ये दुश्वारी-ए-मंज़िल
कहता है मिरा दिल कि क़यामत का सफ़र है