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रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो | शाही शायरी
rahiye ab aisi jagah chal kar jahan koi na ho

ग़ज़ल

रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो

मिर्ज़ा ग़ालिब

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रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो

To go and live in such a place where no one else should be
No one there to share one's thoughts no soul for company

बे-दर-ओ-दीवार सा इक घर बनाया चाहिए
कोई हम-साया न हो और पासबाँ कोई न हो

One should build an open house, no walls nor doors to see
No neighbours to surround nor guards for security

पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो

If perchance one were to ail no one to remedy
And if one were to die no one to weep for thee