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रफ़्ता रफ़्ता तर्जुमानी दर्द की | शाही शायरी
rafta rafta tarjumani dard ki

ग़ज़ल

रफ़्ता रफ़्ता तर्जुमानी दर्द की

दिनेश कुमार

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रफ़्ता रफ़्ता तर्जुमानी दर्द की
शाइ'री है क़द्रदानी दर्द की

ज़ख़्म-ए-दिल का मर्तबा शाहों सा है
और दिल है राजधानी दर्द की

हम से पूछो तुम मज़ा तकलीफ़ का
हम ने की है मेज़बानी दर्द की

मुस्कुराहट बा-सबब होंठों पे है
ख़ुश-नुमा रुख़ है निशानी दर्द की

ज़िंदगी में सब भले ग़मगीन हैं
है अलग सब की कहानी दर्द की

ग़मगुसारों से किनारा कर लिया
दिल ने आख़िर बात मानी दर्द की

मर गए होते 'दिनेश' उस के बग़ैर
जी रहे हैं मेहरबानी दर्द की