रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ख़्वाबों का ये शौक़ हमें वीरानी दे कर जाएगा
देख के सर पर गहरा बादल ख़ुश्क निगाहें कहती हैं
आज हमें ये अब्र यक़ीनन पानी दे कर जाएगा
कुछ ठहराव तो बे-शक उस से मेरे घर में आया है
लेकिन इक दिन मुझ को वो तुग़्यानी दे कर जाएगा
आएगा तो इक दो पल मेहमान रहेगा आँखों में
जाएगा तो इक क़िस्सा तूलानी दे कर जाएगा
काग़ज़ के ये फूल भी अपने चेहरों को फ़क़ पाएँगे
अब के मौसम इन को भी हैरानी दे कर जाएगा
खुश-मंज़र पे आँख जमाए बैठे हैं कि लगता है
रंग कोई बे-रंग नज़र को धानी दे कर जाएगा
ग़ज़ल
रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ग़ज़नफ़र